The Five Kleshas- Avidya (Ignorance), Asmita (Egoism), Raga (Attachment), Dvesha (Aversion), Abhinivesha (Clinging to Life)
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6/18/20251 मिनट पढ़ें
मानव जीवन को आंदोलित करने वाले पाँच क्लेशों (मानसिक/आध्यात्मिक कष्टों) का वर्णन पतंजलि योगसूत्र में किया गया है। ये पाँच क्लेश हमारे दुखों, भ्रमों और बंधनों की जड़ हैं। इन क्लेशों को समझना आत्मज्ञान और मोक्ष की दिशा में पहला कदम है।
🌿 1. अविद्या (Avidyā) – जागरूकता का अभाव / अज्ञान
परिभाषा:
अविद्या का अर्थ है – सत्य को असत्य समझना, अनित्य को नित्य समझना, दुःख को सुख मानना, अशुद्ध को शुद्ध समझना।
यह आत्मा और शरीर, शाश्वत और नश्वर के बीच का भ्रम है।
विस्तार से:
हम शरीर, मन, बुद्धि को ही "मैं" मान लेते हैं, जबकि "मैं" शुद्ध आत्मा है।
यह अज्ञान ही सभी अन्य क्लेशों की जड़ है।
उदाहरण: किसी के साथ कोई बुरा व्यवहार हुआ हो, तो वह स्वयं को पीड़ित मान लेता है, जबकि पीड़ित होने का अहं और दुख दोनों अविद्या से उपजे हैं।
योगदृष्टि से समाधान:
आत्म-चिंतन, ध्यान और विवेक से अविद्या का नाश होता है।
🔥 2. अस्मिता (Asmitā) – अहंकार की अनुभूति / ‘मैं’ की भावना
परिभाषा:
बुद्धि और आत्मा की पहचान को एक समझने से जो ‘मैं’ की भावना उत्पन्न होती है, वही अस्मिता है। यह "कर्ता-भाव" का स्रोत है।
विस्तार से:
व्यक्ति सोचता है: "मैं जानता हूँ", "मैं करता हूँ", "मैं महान हूँ"।
यह ‘मैं’ भाव अनेक भ्रम, तुलना, प्रतिस्पर्धा और अलगाव का कारण बनता है।
अस्मिता से व्यक्ति दूसरों से श्रेष्ठ दिखने की चेष्टा करता है।
योगदृष्टि से समाधान:
निष्काम कर्म, आत्म-निरीक्षण और अहंकार के विसर्जन से इसका शमन होता है।
💓 3. राग (Rāga) – आसक्ति / इच्छा से उपजा आकर्षण
परिभाषा:
जिस वस्तु, अनुभव या व्यक्ति से हमें सुख की अनुभूति हुई हो, उससे बार-बार वह सुख पाने की इच्छा करना – यह राग है।
विस्तार से:
राग जीवन में मोह, लालच और इच्छा-जाल का कारण बनता है।
राग के कारण व्यक्ति स्वतंत्र नहीं रह पाता – वह वस्तुओं या संबंधों पर निर्भर हो जाता है।
"मैं तभी खुश रह सकता हूँ जब..." – यह भावना राग की देन है।
योगदृष्टि से समाधान:
वैराग्य (वितरागता), ध्यान और संतोष (संतोष का अभ्यास) से राग का नाश होता है।
🧨 4. द्वेष (Dveṣa) – घृणा / नापसंद का भाव
परिभाषा:
जिस अनुभव या व्यक्ति से हमें दुःख मिला हो, उससे घृणा या बचने की प्रवृत्ति द्वेष है।
विस्तार से:
द्वेष हमारे भीतर क्रोध, द्वंद्व, बदले की भावना और मानसिक अशांति का कारण बनता है।
यह भी राग की विपरीत दिशा है – जहाँ सुख मिला वहाँ राग, और जहाँ दुःख मिला वहाँ द्वेष।
द्वेष व्यक्ति को अंधा कर देता है – वह निर्णय गलत लेने लगता है।
योगदृष्टि से समाधान:
करुणा, क्षमा और मैत्रीभाव से द्वेष का अंत होता है।
🕯️ 5. अभिनिवेश (Abhiniveśa) – जीवन की तीव्र लालसा / मृत्यु का भय
परिभाषा:
अपने अस्तित्व के लुप्त होने का भय – यानी मृत्यु का भय, जो जीवन को पकड़कर रखने की तीव्र इच्छा बन जाती है।
विस्तार से:
यह क्लेश बहुत सूक्ष्म है और विद्वान या साधक को भी प्रभावित करता है।
व्यक्ति मृत्यु से डरता है, अनिश्चितता से डरता है, परिवर्तन से डरता है – यह सब अभिनिवेश के कारण है।
यह हमें परिवर्तन को अस्वीकार करने, जीवन के प्रवाह से अलग हो जाने पर मजबूर करता है।
योगदृष्टि से समाधान:
आत्मज्ञान, अनित्य भाव की स्वीकृति और समर्पण से अभिनिवेश का क्षय होता है।
🕉️ मानव जीवन के पाँच क्लेश – गहराई से विश्लेषण
1. अविद्या (अज्ञान – Awareness का अभाव)
🔍 क्या है?
अविद्या का अर्थ केवल "ज्ञान की कमी" नहीं, बल्कि "सच्चे ज्ञान का अभाव" है। यह भ्रम है – हमें जो सत्य नहीं है, उसे ही हम सत्य मान बैठते हैं।
🎭 लक्षण:
अनित्य को नित्य मानना: शरीर, संबंध, संपत्ति को स्थायी मान लेना।
अशुद्ध को शुद्ध समझना: वासनाओं, लोभ, इंद्रियों के सुख को पवित्र समझना।
दुःख को सुख समझना: भोग-विलास को सुख का स्रोत मान लेना।
अनात्म को आत्म मानना: शरीर, मन, बुद्धि को "मैं" मान लेना।
🌱 प्रभाव:
व्यक्ति जीवन के असली उद्देश्य से भटक जाता है।
मोक्ष की ओर नहीं, बंधन की ओर चलता है।
आत्मा की बजाय इंद्रियों और मन में लिप्त रहता है।
🧘 उपाय:
विवेक (Discrimination): नश्वर और शाश्वत में भेद करना सीखें।
स्वाध्याय: शास्त्रों और आत्मज्ञान का अभ्यास।
ध्यान और समाधि: आत्मा की साक्षात अनुभूति।
2. अस्मिता (अहंकार – ‘मैं’ की भ्रांत धारणा)
🔍 क्या है?
अस्मिता का अर्थ है – आत्मा की जगह बुद्धि, शरीर या मन को "मैं" मान लेना।
यह "कर्ता-भाव" और "स्वत्व-भाव" की गहराई से जुड़ी है।
🎭 लक्षण:
"मैं ही करता हूँ", "मेरी ही इच्छा चले", "मैं ही सर्वश्रेष्ठ हूँ" जैसे भाव।
तुलना, प्रतिस्पर्धा, और "अपमान का डर"।
दूसरों की सलाह को ठुकराना, आलोचना से चिढ़ जाना।
🌱 प्रभाव:
यह ‘अलगाव’ (separation) पैदा करता है – "मैं अलग हूँ, मैं श्रेष्ठ हूँ।"
रिश्तों में तनाव, सामाजिक अलगाव और मानसिक थकावट बढ़ती है।
🧘 उपाय:
सेवा भाव (Seva): बिना पहचान की इच्छा से काम करना।
साक्षी भाव (Witnessing): "कर्ता मैं नहीं, परमात्मा है।"
अहंकार विश्लेषण: "मैं कौन हूँ?" का बार-बार आत्मपरीक्षण।
3. राग (आसक्ति – किसी चीज़ से मोह)
🔍 क्या है?
राग वह मानसिक वृत्ति है जो किसी वस्तु, व्यक्ति या अनुभव से सुख मिलने पर उसमें लिप्त हो जाती है।
यह सुख की पुनरावृत्ति की लालसा है।
🎭 लक्षण:
किसी विशेष व्यक्ति, वस्तु या स्थान के बिना अधूरा महसूस करना।
इच्छाओं की लिस्ट कभी समाप्त नहीं होना।
जो मिला है, उसका मूल्य न जानना; जो नहीं मिला, उसका पीछा करना।
🌱 प्रभाव:
व्यक्ति "सुख की खोज" में थक जाता है।
अपेक्षाएँ बढ़ती हैं, संतोष घटता है।
मन की स्वतंत्रता नष्ट हो जाती है।
🧘 उपाय:
वैराग्य: आसक्ति के बिना भोग करना – "न मेरा, न तेरा" भाव।
संतोष: जो है, उसमें पूर्णता का अनुभव।
भक्ति: प्रेम को ईश्वर की ओर मोड़ना।
4. द्वेष (घृणा – नापसंद या क्रोध)
🔍 क्या है?
जहाँ हमें दुःख या अपमान का अनुभव हुआ हो, वहाँ जो भी वस्तु या व्यक्ति है, उससे घृणा या द्वेष पैदा होता है।
🎭 लक्षण:
पुरानी घटनाओं को बार-बार याद करना।
बदला लेने की भावना।
असहिष्णुता – दूसरों की सफलता से जलन।
🌱 प्रभाव:
मानसिक अशांति, चिड़चिड़ापन, और जीवन में नकारात्मकता।
अपने ही मन और शरीर को जला देना (जैसे अमृत में विष की बूंद)।
दूसरों को क्षमा न कर पाना।
🧘 उपाय:
करुणा (Compassion): दूसरों की पीड़ा को समझना।
मैत्रीभाव: सबके प्रति समता।
क्षमा और स्वीकृति: “जो हुआ, वह ठीक ही हुआ।”
5. अभिनिवेश (जीवन के प्रति अत्यधिक मोह – मृत्यु का भय)
🔍 क्या है?
यह क्लेश सबसे सूक्ष्म और गहरे स्तर पर है – यह मृत्यु का भय नहीं बल्कि जीवन से चिपके रहने की तीव्र इच्छा है।
🎭 लक्षण:
"मुझे कुछ नहीं होना चाहिए", "मैं अमर रहूँ", "मेरी वस्तुएँ, मेरी पहचान बनी रहे" जैसे भाव।
वृद्धावस्था या बीमारी से डरना।
अपने विचारों, नाम, यश की निरंतरता की लालसा।
🌱 प्रभाव:
परिवर्तन के प्रति प्रतिरोध।
भय से भरे निर्णय, सुरक्षित पर सीमित जीवन।
आध्यात्मिक विकास में रुकावट।
🧘 उपाय:
अनित्य भाव की स्वीकृति: सब कुछ बदल रहा है, यह समझना।
समर्पण (श्रद्धा और विश्वास): ईश्वर की इच्छा में विश्वास।
मृत्यु ध्यान (मरणस्मरण): ‘मुझे मरना है’ का स्मरण, जिससे जीवन की प्राथमिकताएँ स्पष्ट होती हैं।
🔔 अंतिम बात: आत्म-निरीक्षण के प्रश्न
क्या मैं अपने विचारों, शरीर या पहचान को "मैं" मानता हूँ?
मेरी किस इच्छा या वस्तु से सबसे अधिक राग है?
क्या मैं किसी से द्वेष रखता हूँ, और क्यों?
क्या मैं मृत्यु या परिवर्तन से डरता हूँ?
क्या मैं सत्य को सही रूप में पहचान पा रहा हूँ?
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